लक्षद्वीप जियोग्राफी Lakshadweep news in Hindi

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लक्षद्वीप के बारे में बचपन से हम सुनते आए हैं एक द्वीप है छोटा सा लेकिन इसकी कहानी बहुत लंबी है भारत जब 1947 में आजाद हुआ लक्षद्वीप किसका हिस्सा होगा यह पक्का नहीं था जिन्ना भी पूरे फिराक में थे हड़पने की फिर लक्षद्वीप भारत का हिस्सा कैसे बना आज


आपको बताएंगे लक्षद्वीप की पूरी कहानी लक्षद्वीप का इतिहास क्या है लक्षद्वीप भारत का हिस्सा कैसे बना और भारत के लिए लक्षद्वीप का महत्व क्या है लक्षद्वीप कि कुछ सुन्दर तस्वीर।


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ज्ययोग्राफी से भारत के दक्षिण पश्चिमी तट से 200 से 440 किलोमीटर दूर अरब सागर में द्वीपों का एक समूह है न्ही लक्षद्वीप कहा जाता है हालांकि इनका हमेशा से यह नाम नहीं था पहले इन्हें लक्का दी मिनी कोय अमीनी दवी इन तीन द्वीपों के नाम से जाना जाता था लक्षद्वीप शब्द आया है संस्कृत के शब्द लख द्वीप से जिसका मतलब होता है हजार टापू हालांकि वर्तमान में 35 टापू है पहले इनकी संख्या थी 36 फिर समंदर में एक टापू डूब गया।

 लक्षद्वीप एक केंद्र शासित प्रदेश है जिसकी राजधानी का नाम है कवार की ज्योग्राफी के बाद नंबर आता है हिस्ट्री का लक्षद्वीप आईलेंस का सबसे पुराना जिक्र ग्रीक टेक्स्ट पेरी पलस ऑफ एथेरियस सी में मिलता है जिक्र ये भी मिलता है कि पांचवीं सदी आते-आते बौद्ध धर्म लक्षद्वीप पहुंच क्या था बौद्ध जातक कथाओं में भी लक्षद्वीप का जिक्र मिलता है माना जाता है कि बौद्ध भिक्षु संगमित्र यहां आए थे इसके अलावा संगम काल में चेरा साम्राज्य ने इन आइलैंड्स पर राज किया चेरा साम्राज्य की राजा चेरमन पेरूमाल के समय यहां कुछ बसाहट शुरू हुई थी बाद में यहां इस्लाम धर्म के लोग रहते थे

वास्कोडिगामा भारत आया साथ-साथ पुर्तगाली भी आए पुर्तगालियों ने गोवा दमन द्वीप पर कब्जा किया और साथ ही लक्षद्वीप अपनी कॉलोनी का हिस्सा बना लिया लक्षद्वीप के अगाती और मिनिकॉय टापुओं पर पुर्तगालियों ने कुछ किले और चर्च बनाए स्थानीय मुस्लिम आबादी ने पुर्तगालियों का विरोध किया जिसके चलते 1540 तक पुर्तगालियों को लक्षद्वीप छोड़ना पड़ा लक्षद्वीप के इतिहास में अगला बड़ा चैप्टर आता है 1777 में जब लक्षद्वीप मैसूर के टीपू सुल्तान के अधीन आ गया लेकिन फिर जब तीसरे एंग्लो मैसूर युद्ध में टीपू की हार हुई और लक्षद्वीप का प्रशासन ब्रिटिशर्स सरकार ने किया था| 
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अंग्रेजों ने लक्षद्वीप के कुछ द्वीप केरल के अरकर सुल्तान को लीस पर दे दिए बदले में अंग्रेजों को यहां से टैक्स मिलता था आगे चलकर जब सुल्तान टैक्स नहीं चुका पाए तो उन्होंने लक्षी वापस ले लिया और उसे मद्रास प्रेसिडेंसी से जोड़कर मालाबार का हिस्सा बना लिया और वहीं से अंग्रेज इसका प्रशासन संभालने लगे यहां से हम पहुंचते हैं सीधे 1947 पर अंग्रेजों की भारत से रुखसती हो रही थी वो एक बिखरे हुए भारत को छोड़कर जा रहे थे जिसे करने का दारोमदार सरदार पटेल के कंधों पर था 15 अगस्त 1947 को अंग्रेज भारत से चले गए


बंटवारे में लक्षद्वीप का सवाल ही नहीं था क्योंकि ये पहले से ही म प्रेसिडेंसी का हिस्सा था लेकिन फिर हुआ यूं कि जिन्ना की नजर लक्षद्वीप पर अटक गई आप पूछेंगे क्यों मामला सिर्फ जमीन का नहीं था मध्यकाल से ही लक्षद्वीप हिंद महासागर के ट्रेड रूट का एक अहम पड़ाव बन चुका था यहां से हिंद महासागर और अरब सागर दोनों पर नजर रखी जा सकती थी इसलिए मिलिट्री और बिजनेस दोनों के हिसाब से बड़ा महत्व रखता था इसके अलावा लक्षद्वीप की अधिकतर आबादी मुस्लिम थी इस नाते मोहम्मद अली जिन्नाको लगता था

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लक्षदीप जानें का रास्ता 

जहाज से जानें पर 5 हजार से 7 हजार तक लाग सकता है और दूसरे मार्ग से जाने पर अलग अलग लग सकता है

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